History of Tea - चाय का इतिहास क्या है - भारत में चाय कैसे आई और चाय के गुण
सुबह सुबह आलस्य और नींद को दूर भगाने के लिए आप को जिस चीज की सबसे
पहले तलब लगती है ,वह है चाय ।देश के 83 फीसदी परिवार चाय की चुस्की के साथ
ही अपने दिन के शुरुआत करते है।उसके बाद दूसरे काम में लगते है।चाय एक
लोकप्रिय पेय है यह चाय के पौधे की पत्तियों से बनता है।चाय मुख्यता तीन
प्रकार की होती है।1-काली चाय, 2-हरी चाय, 3-गट्टी चाय।
History of Tea/जाने चाय का इतिहास
अगर सुबह कि शुरुवात एक कप गर्म चाय Tea से हो तो बात ही क्या है।सच तो यह है की बिना चाय के अखबार पढ़ने में वो मजा नही आता है।गर्मागर्म खबरे गर्मागर्म चाय के साथ ही अच्छी लगती है।थकने के बाद जिस चीज की सबसे ज्यादा जरूरत होती है।वो है चाय ढावे से लेकर होटल तक चाय हर जगह मौजूद होती है।कोई भी समारोह चाय के बिना संपन्न नही होता है।चीन में इसे welcome Drink माना जाता है।जापान में अतिथियों के स्वागत में टी सेरेमनी होती है।
चाय शब्द कि उत्पत्ति और नामकरण
प्राचीन समय में चीनी लोग इसे 'किया' के नाम से जानते थे । 5वी शताब्दी से
चाय को चा कहा जाने लगा।यह चा नाम आज चाय में बदल चुका है।वही वर्तमान में
इसके अंग्रेजी नाम टी शब्द को 1541 के दौरान यूरोप में Te कहा जाता था।1644
में इसे व्यापारिक भाषा में टी कहा जाने लगा।
बगान से प्याली तक का सफर
चाय के बागानों में पेड़ो से पत्तियां को तोड़ा जाता है।फिर बगान से
पत्तियों को इकठ्ठा कर फैक्ट्री में पहुंचाया जाता है।
जहां इसकी नमी को गर्म ब्लोअर के माध्यम से सुखाया जाता है।इस प्रक्रिया
में 12 से 24 घंटे का समय लगता है।
इसके बाद रोलिंग की प्रक्रिया शुरू होती है। सुखी पत्तियों को मशीन में
डाल कर चलाया जाता है। इससे पत्तियां पूरी तरह टूट जाती है।
इसके बाद ऑक्सीकरण के प्रक्रिया में पत्ती का रंग हरे से लाल ,भूरा और फिर
काला किया जाता है।
पत्तियों को हमेशा उच्च तापमान में ऑक्सीकरण किया जाता है।यह प्रक्रिया कम
ताप पर करने से इसमें स्वाद नही रह जाता।
इसे एक बार फिर गर्म ब्लोअर के माध्यम से सुखाने कि प्रक्रिया चलती
है।पूरी तरह सुखने के बाद इसे टेस्ट के लिए भेजा जाता है।
टेस्ट में पास होने के बाद पैकेजिंग कर इसे मार्केट में भेजा जाता
है।
चाय का इतिहास / History of Tea
चाय को चीनी सम्राट शॉन नाग ने 2737 ईशा पूर्व में खोजा था। शॉन नाग को
पानी उबाल कर पीने की आदत थी।एक दिन बगीचे में टहलते हुए उनके उबले हुए
पानी में कई पत्तियां गिर गई।जिससे पानी में खुशबू के साथ रंग भी आ गया यह
पीने में अच्छा और शरीर के लिए ऊर्जावान था।
इसके बाद उसने उन पत्तियों की झाड़ियों को अपने बाग में लगाने का आदेश
दिया । 5वी शताब्दी के दौरान चाय का प्रयोग औषधीय लाभ के लिए किया
जाता था। धीरे धीरे यह उच्च वर्ग में रोजाना के पेय पदार्थ में शामिल हो
गई। 17वी शताब्दी में चाय पश्चिमी देशों में प्रचलित होने के साथ मशहूर हो
गई।
भारत में चाय का आगमन /Advent of Tea in India
भारत में चाय आधुनिक तरीके से उपयोग का श्रेय अंग्रेजो को जाता है।हालाकि
इससे पहले भी चाय के पत्तियों का प्रयोग अन्य कामों के लिए भारत में होता
था।लिकिन एक पेय पदार्थ के रूप में औधोगिक नजरिए से इसके प्रचलन का श्रेय
अंग्रेजो को ही मिलता है।
भारत दुनिया के सबसे बड़े चाय उत्पादक में से एक है ।भारत में ही 70
प्रतिशत चाय का उपयोग हो जाता है।भारत में चाय को आगे बढ़ाने में ब्रिटिशो
का श्रेय जाता है।उन्होंने लगभग सन 1800 की शुरुवात में चाय की खोज की थी।
वारेन हेस्टिंग्स ने भूटान में तत्कालीन british दूत जार्ज बोगल को पौधे
लगाने के लिए चीन से बीज लाने के लिए भेजा था ।1776 मे सर जोसेफ बैक्स
अंग्रेजो के महान वनस्पति बैज्ञानिक को नोट्स की एक श्रंखला तैयार करने को
कहा गया था और यह उनकी सिफारिश थी की भारत में चाय का उत्पादन किया
जाय।
1780 मे रोबर्ट किड ने भारत से चाय की खेती के लिए एक खेप के बीज का
प्रयोग किया जो चीन से आया था।कुछ दशक के बाद रोबर्ट ब्रुश ने ऊपरी
ब्रह्मपुत्र घटी में बढ़ते जंगली पौधो की खोज की।1823 मे असम से पहली
बार भारतीय चाय सार्वजनिक बिक्री के लिए इंग्लैंड भेजी गई।
1815 में अंग्रेजो का ध्यान असम में उगने वाली चाय की झाड़ियों पर गया
जिसे स्थानीय लोग पेय के रूप में इस्तेमाल करते थे।भारत के गवर्नर जनरल
लार्ड विलियम बेंटिक ने 1834 में चाय की परंपरा यहां शुरू करने और उत्पादन
की संभावना तलाशने के एक समिति का गठन किया ।1835 में चाय के बाग
लगाए गए।भारत में 1935 में टी बोर्ड की स्थापना की गई ।इसने देश में चाय
उत्पादन को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई।आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा
चाय उत्पादक देश है।
चाय उत्पादन में अग्रणी देशों में शुमार है भारत
भारत चाय पीने में हीं नहीं बल्कि उत्पादन में भी दुनिया में अग्रणी देशों
में शुमार है।भारत के असम ,नीलगिरी की पहाड़ियां,और दार्जिलिंग चाय पूरी
दुनिया में महसूर है।भारत के अलावा चीन और केन्या भी चाय का उत्पादन में
दुनिया के शीर्ष देशों में शामिल है।
चाय के गुण
चाय के स्वस्थ पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर बहुत सी बाते कही जाती
है।लेकिन पिछले कुछ दशकों से इसके जैव रासायनिक और फार्मालॉजिकल गुणों पर
हुए अनुसंधान से अनेक स्वास्थकारी लाभों का पता चला है।
चाय पोटेशियम सहित अनेक खनिज पदार्थों का स्रोत है। इसमें थायमिन नमक एक
अमीनो Acid होता है जिसका एक मात्र स्रोत चाय है।इसके अलावा चाय में मौजूद
कैटेचिन पोलिफिनोल और एंटीऑक्सीडेंट इसे एक स्वास्थवर्धक पेय बनाते
है।
चाय अपनी औषधीय गुणों के कारण ही नही बल्कि रोजमर्रा जिंदगी के आनंद और
ताजगी के लिए जरूरत बन गई है।Tea चाय मूल रूप से कड़वी गर्म तासीर बाली वा
ऊर्जादायक होती है।यह कफ पित्त का शमन करती है।
देश के जाने माने आयुर्वेदाचार्य आचार्य श्री बालकृष्ण का कहना है कि
आयुर्वेद में चाय का प्रयोग औषधि के रूप में किया जाता है।लेकिन ज्यादा चाय
पीने से नुकसान भी होता है।यह ऐसा पेय पदार्थ है।जिसमे टैनिन और कैफिन होता
है।जो शरीर को स्फूर्ति प्रदान करने में सहायता प्रदान करता है।इस लिए अकसर
थक जाने पर चाय पीने से स्फूर्ति का एहसास होता है।लेकिन हद से ज्यादा चाय
पीने से शरीर को नुक्सान पहुंचने लगता है।चाय ज्यादा पीना नुकसान दायक
है।
सोनीपत में स्थित भगतफूल सिंह महिला विश्व विद्यालय की आयुर्वेद विभाग की
प्रमुख डॉ. वीना शर्मा के अनुसार चाय मूलरूप से कड़वी गर्म तासीर बाली वा
ऊर्जादायक होती है।यह कफ पित्त का शमन करती है ।यह उत्तेजित भी करती
हैं।चाय के सेवन से अस्थमा के रोगियों को राहत मिलती है।काली चाय का सेवन
मधुमेह के रोगियों के लिए फायदे मंद है।चाय का ज्यादा सेवन अनिद्रा की
समस्या पैदा कर सकता है।चाय का सेवन ज्यादा करने से कब्ज पैदा करता
है।
निष्कर्ष (Conclusion)
दोस्तो आज के इस लेख में आपको चाय का इतिहास और चाय के गुण तथा चाय का
उत्पादन कैसे होता है।आदि के विषय में जानकारी दी है अगर आपको यह लेख पढ़
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